झूटी जानकारी देकर बने डीपीएम, हाईकोर्ट की गिरी गाज, मूल पद भेजे जाने किया आदेश
अनूपपुर । बीते वर्ष पूर्व प्रदेश भर में बीपीएम के पद पर पदस्थ कर्मचारियों के द्वारा विभाग एवं अपने उच्चाधिकारियों को झूठी जानकारी प्रस्तुत करते हुए कूट रचित दस्तावेज तैयार कर बीपीएम से डीपीएम बनकर काम करने लगे थे पूरे मामले में जानकारी लगने के बाद लोगों द्वारा शिकायत किया गया शिकायत के आधार पर संचालनालय एनएचएम के माध्यम से पूरे मामले की जांच कराई गई जांच में दोषी पाए जाने के बाद उक्त पद को फर्जी प्रमाण देते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के द्वारा अयोग्य घोषित करते हुए निरस्त कर दिया गया जहां बीपीएम से बने डीपीएम मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय के शरण में स्थगन लेकर अपने मूल पद से हटकर डीपीएम के दायित्व का निर्वहन करते हुए जड़ जमा कर बैठे थे यह मामला केवल अनूपपुर मैं पदस्थ डीपीएम सुनील नेमा के साथ ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के कई जिलों में चल रहा था उच्चतम न्यायालय की सुनवाई चलती रही अंततः परिणाम यह आया कि हाईकोर्ट ने समस्त दस्तावेजों का अवलोकन करते हुए आदेश पारित कर फर्जी तरीके से कूट रचित दस्तावेज तैयार कर बीपीएम से बने डीपीएम के विरुद्ध संचालनालय द्वारा की गई कार्यवाही को उचित निर्णय मानते हुए फैसला सुना दिया गया कि उपरोक्त पद के विरुद्ध संचालनालय द्वारा की गई कार्यवाही कोई गलत नहीं बल्कि उचित था निर्णय के मुताबिक अवैध तरीके से बनाए गए बीपीएम से डीपीएम अपने मूल पद में जाकर सेवा दें।
’डीपीएम सुनील नेमा भी किया था गलत’
उपरोक्त मामले को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम प्रबंधक सुनील नेमा के द्वारा भी पूरे मामले को लेकर शासन को गुमराह करते हुए अवैध तरीके से दस्तावेज तैयार कर अपने मूल पद से हटकर लगभग 2 वर्षों तक जिले में डीपीएम के पद पर कार्य किया गया है, इनके द्वारा शासन-प्रशासन विभाग एवं जिम्मेदार अधिकारियों को धोखा में रखते हुए झूठी जानकारी देकर जिला कार्यक्रम प्रबंधक के दायित्व में रहकर काम किया गया है क्यों ना ऐसे दोषी कर्मचारी जो अपने रोहित को लेकर फर्जी काम किए हैं इनके विरुद्ध विभाग द्वारा दंडात्मक एवं कड़ी कार्यवाही यह जाने का कार्य करना चाहिए इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय के आदेश आते ही ये अपने आप को बनाए रखने हेतु डबल बेंच के न्यायालय एवं स्थगन हेतु ताकत झांक रहे हैं इस स्थिति में विभाग के जिम्मेदार मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पदेन सचिव कलेक्टर द्वारा ऐसे दोषी कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी एवं दंडात्मक कार्यवाही करते हुए इन्हें पद से पृथक किए जाने का कार्य करेंगे या उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना करते हुए मानवता दिखाने का कार्य करेंगे।
’यह रहा आदेश’
याचिकाकर्ता जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम), जिला सामुदायिक मोबिलाइजर (डीसीएम) और जिला लेखा प्रबंधक (डीएएम) के पद पर नियुक्ति के लिए वर्ष 2021 में आयोजित सीमित विभागीय परीक्षा के परिणाम को रद्द करने से व्यथित हैं। याचिकाकर्ताओं का मामला है कि उन्हें बी-मॉक के पद पर नियुक्त किया गया था। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में संविदा आधार पर लेखाकार। बी-मॉक की पोस्ट. वर्ष 2016 में अकाउंटेंट को बर्खास्त कर दिया गया था लेकिन याचिकाकर्ता नंबर 1 द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के मूल्यांकन के आधार पर, उन्हें अकाउंटेंटध्जिला खाता सहायक के रूप में नियुक्त किया गया था जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 को जिला खाता सहायक के रूप में नियुक्त किया गया था। 4.2.2021 को प्रतिवादी संख्या 2 ने एक विज्ञापन जारी कर डीपीएमध्डीसीएमध्डीएएम के पद पर नियुक्ति के लिए योग्य उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित किए। उक्त पद सीमित विभागीय परीक्षा के आधार पर भरे जाने थे और केवल मौजूदा कर्मचारी ही सीमित विभागीय परीक्षा में भाग लेने के पात्र थे। यह हैयाचिकाकर्ताओं का मामला यह है कि वे सभी उत्तरदाताओं द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार पात्रता रखते थे। वे परीक्षा में शामिल हुए और उन्हें सफल घोषित किया गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा तैयार की गई चयन सूची के आधार पर, याचिकाकर्ताओं को आदेश दिनांक 7.6.2021 द्वारा जिला लेखा अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। निवेदन है कि उसके बाद अचानक दिनांक 23.7.2021 के आदेश द्वारा पूरी चयन प्रक्रिया रद्द कर दी गई है।
’याचिकाकर्ता के वकील ने रखा था यह पक्ष’
पूरे मामले को लेकर माननीय न्यायालय के पास याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया है कि यदि सीमित परीक्षा के खिलाफ उठाई गई शिकायतों में लगाए गए सभी आरोपों पर विचार किया जाता है, तब भी यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी और केवल इसलिए कि कुछ चयनित उम्मीदवारों के पास न्यूनतम योग्यता नहीं थी, इससे पूरी चयन प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी और इस प्रकार पूरी चयन प्रक्रिया को रद्द करके नीचे के अधिकारियों ने गलती की है।
4. इसके विपरीत, उत्तरदाताओं के वकील ने चयन प्रक्रिया को रद्द करने का समर्थन किया है।
5. उभयपक्षों के विद्वान वकील को सुना।
6. यह विचार करने से पहले कि क्या दिनांक 23.7.2021 का आक्षेपित आदेश जिसके द्वारा संपूर्ण चयन प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी, सही है या नहीं, यह न्यायालय इस पर विचार करना उचित समझता है कि क्या सीमित अंतर विभागीय परीक्षा आयोजित करना कानून के अनुसार था या नहीं? तदनुसार, पार्टियों के वकीलों को इस सवाल पर संबोधित करने का निर्देश दिया गया था कि क्या डीपीएम/डीएएम/डीसीएम के पद को भरने के लिए सीमित अंतर-विभागीय परीक्षा की अनुमति है या नहीं।
7. दोनों पक्षों का कोई भी वकील ऐसा कोई नियम बताने की स्थिति में नहीं था जो डीपीएमध्डीएएमध्डीसीएम के पद पर नियुक्ति के लिए सीमित अंतर-विभागीय परीक्षा आयोजित करने की अनुमति देता हो। उत्तरदाताओं के वकील ने नोट-शीट की एक प्रति प्रदान की है जिससे सीमित इंट्रा डिपार्टमेंट परीक्षा आयोजित की गई। दिनांक 24.12.2020 की नोटशीट द्वारा डीपीएमध्डीएएमध्डीसीएम पद के लिए सीमित विभागीय परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव किया गया था। मामला लीगल सेल तक गया और तदनुसार लीगल सेल ने इस प्रकार अपनी राय दीः-
नोटशीट पृ.क्र.-2 के ’ए‘ भाग में जिलों में वर्तमान में कार्यरत डीपीएम/डीएएम/डीसीएम प्रभारियों (संविदा) को भी प्रस्तावित विभागीय परीक्षा में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान किया जाना न्याय संगत होगा क्योंकि उक्त प्रभारी अधिकारियों द्वारा भी उक्त संवर्ग के पदों पर पिछले कई वर्षों से कार्य किया जा रहा है।
’नही था प्रमोशनल पद’
न्यायालय द्वारा पहले ही बताया जा चुका है कि संविदा कर्मचारियों की सेवाएँ किसी भी नियम द्वारा शासित नहीं होती हैं। यहां तक कि डीपीएम/डीएएम/डीसीएम के पद भी प्रमोशनल पद नहीं हैं। कोई फीडर पोस्ट उपलब्ध नहीं कराया गया है. पदोन्नति और सीधी भर्ती में बहुत बड़ा अंतर है। पदोन्नति के मामले में किसी बाहरी व्यक्ति का इस मामले में कोई अधिकार नहीं है, लेकिन सीधी भर्ती के मामले में प्रत्येक पात्र व्यक्ति, चाहे वह विभाग का कर्मचारी हो या नहीं, को भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार है। गैर-सेवारत श्रेणी के योग्य उम्मीदवारों को डीपीएम/डीएएम/डीसीएम के पद के लिए प्रतिस्पर्धा करने से रोकना एक उचित वर्गीकरण नहीं कहा जा सकता है, जिसमें एक समझदार अंतर है जो सेवारत उम्मीदवारों को उन उम्मीदवारों से अलग कर सकता है जो प्रतिवादी विभाग में सेवा में नहीं हैं। केवल अनुभव को ही अतिरिक्त योग्यता माना जा सकता है। इसलिए, अतिरिक्त योग्यता के लिए कुछ वेटेज दी जा सकती है सेवारत अभ्यर्थी, लेकिन जो पद पदोन्नति से नहीं भरे जाने हैं और जहां नए नियुक्ति आदेश जारी किए जाने हैं, उत्तरदाताओं ने गलत तरीके से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत निहित संवैधानिक योजना का उल्लंघन करते हुए सीमित अंतर-विभागीय प्रतियोगी परीक्षा दी थी।
’अवैध गतिविधियों के साथ नही हैं न्यायालय’
जारी किए गए आदेश मैं उच्चतम न्यायालय द्वारा स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि पति प्रक्रिया पूर्ण रूप से गलत है जिसे संचालनालय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के द्वारा अलग-अलग आधारों पर पहले ही अपनी भर्ती प्रक्रिया रद्द कर दी है, इसलिए इस अदालत की सुविचारित राय है कि कानून के तहत सीमित अंतर-विभागीय प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करने की अनुमति नहीं थी। उपरोक्त पहलू को नजरअंदाज करके यह न्यायालय अवैधता को कायम नहीं रख सकता। इसके अलावा इस पहलू पर विचार करने से पहले उत्तरदाताओं के वकील को इस न्यायालय को संबोधित करने के लिए सुनवाई का पूरा अवसर दिया गया था। 
’पूरे मामले में यह रहा फैसला’
हाईकोर्ट ने पूरे मामले में निर्णय देते हुए बताया कि डीपीएमध्डीएएमध्डीसीएम के पद के लिए सीमित अंतर-विभागीय परीक्षा आयोजित करना संवैधानिक योजना के अनुसार नहीं था, तदनुसार, हस्तक्षेप की आवश्यकता वाला कोई मामला नहीं बनता है। हालाँकि, उत्तरदाताओं को सभी पात्र व्यक्तियों से आवेदन आमंत्रित करने वाले पदों का विज्ञापन करने और यदि आवश्यक हो तो पदों को भरने की स्वतंत्रता दी गई है। चूंकि चयन प्रक्रिया पहले ही रद्द हो चुकी है, इसलिए ये याचिकाएं खारिज की जाती हैं. अंतरिम आदेश दिनांक 5.1.2022 को इसके द्वारा निरस्त किया जाता है। याचिकाकर्ता अपने संबंधित पदों पर काम करेंगे जो चयन प्रक्रिया आयोजित होने से पहले उनके पास थे। लागत के संबंध में कोई आदेश नहीं।
’जिम्मेदार करेंगे कार्यवाही या देंगे अभयदान’
पूरे मामले को लेकर अगर शिकायत कर्ताओं की बात करें तो शिकायत के आधार पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मध्य प्रदेश शासन के द्वारा जांच उपरांत दोष सिद्ध होने पर पूरे प्रक्रिया को निरस्त कर दिया गया था इसके बावजूद भी अपने विभाग को चैलेंज दे देते हुए अभ्यर्थियों द्वारा मामले को उच्चतम न्यायालय ले जाया गया जहां न्यायालय द्वारा आदेश जारी करते हुए स्पष्ट रूप से उन्हें अपने मूल पद को भेज दिया गया है इस स्थिति में देखना यह है कि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ,कलेक्टर, मिशन संचालक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मध्यप्रदेश शासन के द्वारा इनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाएगी या इन्हें अभय दान देते हुए डबल बेंच में मामले को अटकाने का अवसर प्रदान किया जावेगा।